उसने कहा
अगले कुछ सालों में
सारे बहुरूपिए मठों द्वारा भाड़े पर उठा लिये जाएँगे
यह पवित्र महीना था
छोटी सी भीड़ के सामने एक मजाकिया प्रोग्राम में
पता नही किस धुन में उसने कहा जैसे चेतावनी के लहजे में
लेकिन तब मठाधीश कहाँ होंगे?
जहाँ उनकी सही जगह है, उसने यह भी कहा,
नर्क में भयानक दैत्यों से चीरे फाड़े जाते हुए
भीड़ के सवाल का जवाब देते हुए
वह कितना गंभीर थी पता नहीं लेकिन
यह मजाक उस संधि के खिलाफ था जिसमें लिखा गया था कि
मठाधीश के अपमान की वही सजा जो राष्ट्राध्यक्ष के अपमान की
लोगों का ध्यान नहीं गया था इधर
उसके मजाक का केंद्र राष्ट्राध्यक्ष भी थे
पहली बार चुने गए नौसिखुआ
हर मामले में जाहिर था उनका अनाड़ीपन
उस पर अभियोग लगाया गया कि उसने अपराध किया
पवित्र पुरुष के सम्मान पर हमला करने का
अगले पाँच साल उसे जेल में बिताने पड़ सकते हैं
उसके पिता से पूछा गया
उन्होंने आँखें आसमान की ओर उठाईं :
ये आरोप तो मध्ययुग की ओर लौटने जैसे हैं
मेरी बच्ची को ईश्वर पर छोड़ दिया जाए
भले ही वह गर्म अंगारों पर चले
जैसा कि होता आया है
मठाधीश के शिष्य इसे मुद्दा बनाकर हवा दे रहे हैं
यह किसी ऐरे गैरे का मजाक उड़ाने भर का मामला नहीं रह गया था
बेचारी औरत वाली छवि के उलट उसकी हिम्मत कैसे हुई
सबसे बड़े मठाधीश का मजाक उड़ाने की
इससे तो अव्यवस्था फैल जाएगी
देखा देखी कोई कुछ भी कहने लगेगा
लगाम ही नहीं रह जाएगी सिरफिरों पर
और औरतें तो होती ही हैं आधे दिमाग की
उसके समर्थन में कूद पड़े थे भाँड़ विदूषक कहे जाने वाले संगठन
जो बराबरी और अधिकारों की माँग के लिए चिल्लाते रहते थे
ऊपर से देखने में यह सब गड़बड़
परिहास बोध की कमी हो जाने के कारण हुआ लगता है
बहरहाल यह न्याय व्यवस्था के लिए एक तगड़ा मामला पेश था
हो सकता है कल आप सुनें मठाधीश ने क्षमा कर दिया है उसे
और उससे अगले दिन उसका खंडन,
बुद्धिजीवी का बयान
बयान पर कुछ और बयान